*# जख्म पर नमक छिड़कना*
"क्यों करती हो ऐसा ? जब जानती हो कि तुम्हारे ऐसा करने से भैया - भाभी को कोई फर्क नहीं पड़ेगा तो फिर क्यों कुसुम ?" लक्ष्मण ने अपनी पत्नी कुसुम की तरफ देखते हुए कहा ।
"मुझे विश्वास है कि जिस तरह आप मेरी बात मान गए और बंटवारा ना होने की बातों में मेरा समर्थन किया आज तक करते आ रहें हैं वैसे ही भैया - भाभी को भी एक दिन समझ में यह बात आ ही जाएगी ।" मुस्कुराते हुए कुसुम ने कहा ।
" सुना था ना आज तुमने , भाभी ने तुम पर यह घर हथियाने का आरोप भी लगा दिया । वों लोग समझ रहें हैं कि तुम और मैं इस घर को मां से किसी दिन लिखवा लेंगे। उनका मानना यहां तक है कि इस घर के दो हिस्से हम इसलिए नहीं होने देना चाहते क्योंकि मां के नाम पर जो कुछ भी संपत्ति हैं वह हम अकेले लेना चाहते है । नहीं .. नही... लेना नही चाहते बल्कि हड़पना चाहते हैं ऐसी हमारे प्रति उनकी सोच है । अभी भी समय है , छोड़ दो यह जिद । आज नहीं तो कल हम दोनों भाईयों में बंटवारा तो होना ही हैं । जो काम कल होना है वह आज ही हो जाएं यही हम सबके लिए बेहतर है । कम - से -कम घर में शांति तो रहेगी ।" लक्ष्मण ने अपनी पत्नी कुसुम को समझाते हुए कहा ।
"मैं भी घर में शांति चाहती हूॅं लेकिन इस तरह तो बिल्कुल भी नहीं । किसी का मन दुखाकर हम शांति प्राप्त कर सकते हैं क्या ? यह बंटवारा मांजी के मन को आहत करेगा , यह तो आप जानते ही हो फिर भी मुझे ऐसा कह रहे है आप ?" कुसुम ने अपने पति लक्ष्मण से कहा ।
"मैं जानता हूॅं । मां की एक ही तो इच्छा है । वह सिर्फ यही तो चाहती है कि उनके जीते जी हम दोनों भाई एक ही छत के नीचे उनके साथ रहें और उनके रहते बंटवारा ना हो । मैं भी तुम्हारी तरह मां की इस भावना के साथ हूॅं लेकिन भैया - भाभी , वों तो समझने के लिए तैयार ही नहीं है ।" लक्ष्मण ने दुखी स्वर में कुसुम से कहा ।
" समझ जाएंगे । मुझे विश्वास है कि एक ना एक दिन वों दोनों भी हमारी तरह मांजी के मन की भावना समझ ही जाएंगे ।" मुस्कुराते हुए कुसुम ने कहा ।
"अच्छी बात होगी जब वों दोनों समझेंगे लेकिन तब तक तुम तो उनकी नजरों में बुरी बनी रहोगी । इस दरमियान ना जाने भाभी तुम्हें क्या - क्या ताने देंगी और तुम मुस्कुराते हुए सुनती रहना।" लक्ष्मण ने मुंह बनाते हुए कहा ।
" क्या करूं ! अब ऐसी ही हूॅं मैं । अपनों की खुशियों के लिए बहुत कुछ झेल सकती है आपकी पत्नी । आपसे वादा है मेरा, मां जी की इच्छा तो मैं पूरी करके ही रहूंगी।" कुसुम ने अपना हाथ अपने पति लक्ष्मण के हाथों में रखते हुए कहा ।
" तुम्हें भी जानता हूॅं और तुम्हारी जिद को भी । एक बार जो तुम ठान लेती हो उसे करके ही दम लेती हो ।" लक्ष्मण ने कुसुम के कंधे को अपने दोनों हाथों से पकड़ते हुए कहा ।
बाहर आती अपने देवर और देवरानी की सम्मिलित हंसी जब लक्ष्मण की भाभी ने सुनी तो जलभून गई । "यें दोनों हमारे लिए मुसीबत पैदा कर खुद खुशियां मना रहें हैं, इन दोनों की कल खबर लेती हूॅं मैं ।" मन ही मन में बुदबुदाते हुए लक्ष्मण की भाभी अपने कमरे की तरफ बढ़ गई ।
दूसरे दिन अपनी सास को अपनी देवरानी के खिलाफ लक्ष्मण की भाभी भड़काने में लगी हुई थी जिसे सुनकर लक्ष्मण की माॅं को ऐसा लग रहा था जैसे उसकी बड़ी बहू उसके जख्मों पर नमक छिड़क रही है। लक्ष्मण की माॅं भलीभांति जानती थी कि कौन घर का बटवारा चाहता है उसकी बड़ी बहू छोटी बहू? सब कुछ जानते - समझते हुए भी वह चुप इसलिए थी क्योंकि वह सिर्फ अपने घर की शांति चाहती थी।
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धन्यवाद 🙏🏻🙏🏻
गुॅंजन कमल 💓💞💗
Mahendra Bhatt
19-Feb-2023 09:06 PM
बहुत खूब
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डॉ. रामबली मिश्र
18-Feb-2023 09:27 PM
शानदार
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अदिति झा
17-Feb-2023 10:40 AM
Nice 👍🏼
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